तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों की तर्ज़ पर मीनारों और गुम्बदों को ऊँचा करने और सड़कों पर नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को इससे काफी चोट पहुँच रही है.सर्व-धर्म समभाव हमारी पहचान है.सदियों पुरानी इस रिवायत को हम यूँही खो जाने नहीं देंगे. इस मंच के मार्फ़त हमारा मकसद परस्पर एकता के समान बिदुओं पर विचार करना है.अपेक्षित सहयोग मिलेगा, विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो संवाद बनता है.





पंडित-पुरोहित के बिना उर्स मुकम्मल नहीं होता

on मंगलवार, 16 सितंबर 2008

हिन्दू भी रखते हैं रोज़ा



आज मुल्क के दुश्मन तरह-तरह की आतंक कारी गतिविधियों द्बारा हमें बांटने में लगे हैं.वहीँ हम ब्लोगेर-मित्र भी इक-दूसरे को हिंदू-मुस्लिम के चश्मे से देखने की कोशिश कर रहे हैं.अगर दरहकीक़त ऐसा कर रहे हैं तो अप्रत्यक्ष सही हम उन देशद्रोहियों के मकसद को कामयाब कर रहे हैं.वो बम विस्फोट कर हमें एक-दूसरे से बाँटना ही तो चाहते हैं.ऐसे समय हमें अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए.ऐसे वक्त महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ , बिहार के लोग आश्वस्ति का गहरा एहसास करते हैं।
मुसलमानों का बहुत ही पाक महीना है रमजान.इस महीने आत्म-संयम पर विशेष बल दिया गया है।
मराठवाडा के दौलताबाद के इलाके में हिन्दू भी रोजे रखते हैं.ये पूरा अंचल ही हिंदू-मुस्लिम एकता का ज़िंदा सबूत है.दोनों समुदाय के लोग समानांतर पूजा-अर्चना करते हैं और ऐसा आज से नहीं सदियों से करते आ रहे हैं।
दौलताबाद के चाँद बोघ्ले दरगाह में कोई जाकर देख सकता है कि कुरआन का पाठ यानी तिलावत और भजन-कीर्तन अगल-बगल होते रहते हैं.चाँद बोघ्ले भक्ति संत एकनाथ के गुरु थे पर कोई नहीं जानता कि वोह हिंदू थे या मुसलमान.लेकिन इनके प्रति श्रद्धा दोनों समुदाय में समान है.कभी कोई विरोध नहीं.कोई चादर चढाता है तो कोई अपने ढंग से अर्चना करता है.कितनी सुखद अनुभूति है कि आस-पास रहने वाले बहुसंख्यक हिंदू भी रमजान में रोजे रखते हैं।
मराठवाडा के ही खुल्दाबाद स्थित परियों का तालाब में दरगाह परिसर के मध्य शिवलिंग स्थापित है.दरगाह में लगे खम्बों पर हिंदू परम्पराओं के चित्र और नक्काशी अंकित है.जिसे देख कर कई पुरातत्त्व वेत्ताओं का सशंकित होना सहज है कि कहीं ये हिंदू मट्ठ तो नहीं.बावजूद इसके आज तक इसको लेकर न कोई विवाद हुआ और न कोई संघर्ष । दरगाह के वार्षित उत्सव यानी सालाना उर्स में दोनों समुदाय के लोग समान रूप से शिरकत करते हैं.और बिना ब्रह्मण पुरोहित की भागीदारी के कोई उर्स संपन्न नहीं होता।
मराठवाडा का पेठ ग्राम जो नांदेड तालुका में है , में कोई भी एक ही अहाते में मन्दिर-मस्जिद को देख सकता है।
अब छत्तीसगढ़ के सीमांचल जिला मुख्यालय रायगढ़ शहर चलें।
यहाँ एसपी कोठी के बिल्कुल पास ही है मुस्लिम-संत सैयद नज़रुल्लाह की मजार.वर्षों तक इसकी देखभाल एक पंडित जी करते रहे.हालांकि मजार की देख-रेख के लिए स्थानीय जामा मस्जिद ट्रस्ट जिम्मेवार है.और ट्रस्ट भी अपना फ़र्ज़ निभाता ही है.लेकिन पंडित जी अपनी भक्ति में मस्त रहा करते.अज पंडित जी नहीं रहे लेकिन उनके वंशज आज भी उतनी ही श्रद्धा से इस साझी-परम्परा को निभा रहे हैं।
चंपारण बहुत ही चर्चित अंचल है.गाँधी जी ने अपने स्पर्श से इसे अमर कर दिया.पूर्वी चंपारण का जिला मुख्यालय है शहर मोतीहारी.यहाँ भी जामा मस्जिद और एक मन्दिर कि इमारत बिल्कुल पास-पास खड़ी है.ऐसे उदाहरण हमारे देश में कई मिल जायेंगे.आज हमें ऐसी ही रौशनी की तलाश है.जिस पर भी ये किरण पड़ती है वो आत्मविभोर हो उठ ता है।
भारतीय चिंतकों(इसे हिंदू न समझा जाय ) में मुझे विवेकानंद ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है.उनका कहना है: कट्टरवाद की बीमारी सबसे खतरनाक बीमारी है।
और हम उसे ही प्रोत्साहन देने में लगे हैं.जबकि एक कट्टरता दूसरी कट्टरता को जन्म देती है.सवाल हिंदू या मुस्लिम का नहीं बल्कि दोनों ओर से उठी कट्टरता को दबाकर उनमें देश के प्रति फ़र्ज़ को जगाने का है.आज देश में ही बैठे कुछ लोग दूसरों के बहकावे में आकर जो घृणित-कर्म में लगे हैं.हम उन्हें समझाएं और अगर वो न समझ पायें तो हम उन्हें कानून के हवाले कर दें.अगर अदालत उन्हें रिहा कर देती है.तो उन्हें हम देश की मुख्य धारा में लाने का प्रयास करें।
हमारा देश गाँधी और आजाद का है।
बिस्मिल और अशफाक का है।
जब बिस्मिल बीमार होते तो वोह अल्लाह-अल्लाह याद करते ।
और जब अशफाक बीमार पड़ते तो वोह राम-राम का जाप किया करते।
ये देश न किसी लादेन का है और न किसी गोडसे का
फिर विवेकानंद याद आ रहे हैं,उनका कहना था भारत के लिए वेदान्त मस्तिष्क है और इस्लाम देह।
अंत में यही कहूंगा:
ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम
सबको सम्मति दे भगवान्

14 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है.

कट्टरवाद की बीमारी सबसे खतरनाक बीमारी है।

विवेकानन्द का यह कथ्य, उनके हर कथ्य की तरह, बहुत ही प्रभावी है.

बहुत शुभकामनाऐं.

Smart Indian ने कहा…

शहरोज़ जी,
बहुत अच्छा लेख है. मैंने ब्राह्मणों की शादी में मुसलमान खानसामों को खाना बनाते भी देखा है और एक मुसलमान बुजुर्ग के शंखनाद के साथ शिवजी की बरात का चलना देखा है. सहिष्णुता की भारतीय परम्परा को संभालना और उसे ओसामा और सिमी से बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है. यहाँ यह कहना ज़रूर चाहूंगा कि कल की बातों से बहके बिना हमें आज की चुनौतियों पर ध्यान देने की ज़रूरत है जिससे शान्ति की राह से भटकने के आसार कम रहें. अजहर मसूद और ओसामा बिन-लादेन जैसों के हाथ में लगभग हर राष्ट्रीयता के हजारों निहत्थों का खून लगा हुआ है जिसमें मुसलमान और ईसाइयों के साथ बौद्ध और यहूदी भी शामिल हैं. मगर हम ऐसे वहशियों को भारत में सफल नहीं होने देंगे.

Satish Saxena ने कहा…

शहरोज़ भाई !
आपका यह लेखन, देश में नफरत का जहर फैला रहे कुछ लोगों के प्रयासों पर पानी फेरना कहा जा सकता है ! यह सामयिक लेख बारूद के धुँए की गंध को दूर करने हेतु एक खुशनुमा सुगन्धित ठंडी हवा का झोंका है, जिसे महसूस कर सारी थकन सारी चोटें काफूर हो जाती हैं ! आपके इस तरह के शोधपूर्ण लेख न केवल हमें अपने दिल में दुबारा झाँकने को मजबूर करते हैं बल्कि हमारे देश के विभिन्न भागों में अन्य संस्कृतियों के बारे में सीखने का मौका भी देते है ! अगर आप जैसे कुछ और सपूत लेखक इस देश को मिल जाएँ तो हमारे दिलों में घुला जहर साफ़ होते देर नही लगेगी !

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

भाई धर्म तो व्यक्तिगत मान्यताओं का मामला है। इसे जब हम सामाजिक बना देते हैं तो झगडे खड़े होते हैं। भारतीय परंपरा तो सहजीवन की परंपरा है। उसे जीवित रखने की जिम्मेदारी हमारी पीढ़ी की है जिसे नष्ट करने को अनेक लोग तुले हुए हैं अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए।

khalid ने कहा…

shehroj ji ...
bahut achcha likh hai .........sab jante bate huwe logo par raj kiya jaat hai .......is liye log nafrat ki aag hadka rahe hai ...........wahi purani baat fut daalo raj karo...... khalid a khan

बेनामी ने कहा…

शहरोज़, देश भर में ऐसे लाखों उदाहरण मिल जाएंगे, जहां दोनों कौमों ने कभी फर्क नहीं किया. दोनों अपनी-अपनी दुनिया में मस्त और एक दूसरे का सम्मान भी. जो दूसरों को सम्मान न दे, वो धर्म कैसा ?

Alok
www.raviwar.com

संजय बेंगाणी ने कहा…

कट्टरवाद की बीमारी सबसे खतरनाक बीमारी है।

यह बात सब समझे यही कामना है.

Anil Pusadkar ने कहा…

सही कहा आपने,छत्त्तीसगढ इस ममले मे खूशनसीब है,आपको चरोदा मे बाबूखान का बनाया शिव मन्दिर भी याद होगा,फ़िर मोहम्मद अकबर ने भी रायपुर मे राम मन्दिर बनाया है,बहूत है बताने को,लिखून्गा ताकि सब को पता चले।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यह एक बहुत बड़ा सच है,मैं खुद नियम से दरगाह पर सर झुकाती हूँ,
तरीके में भिन्नता मुमकिन है,भावना वही है.......

राज भाटिय़ा ने कहा…

कट्टरवाद की बीमारी सबसे खतरनाक बीमारी है, दुसरा आग लगाने ओर भडकाने वालो से भी हमे बचना चाहिये, वेसे जब मेरा दोस्त(पकिस्तान से) इस दुनिया से गया तो मेने उस की रुह को जन्नत मे जगह मिले के लिये नमाज भी अदा की ओर इस से मेरे धर्म को तो कोई हानि नही हुयी, बल्कि मुझे आत्मिक शान्ति मिली.
आप ने बहुत ही सुन्दर लिखा हे काश सारे भारत वाषी आप के ख्याल के हो जाये तो हमारे भारत मे ही नही पुरी दुनिया मे कितनी शान्ति हो.
धन्यवाद

Satish Saxena ने कहा…

राज भाई ! के कमेंट्स का जवाब इस छोटी जगह पर नही दिया सकता ! उनके लिए मैं अपनी अगली पोस्ट पर लिखूंगा ! आपका धन्यवाद

pallavi trivedi ने कहा…

बहुत अच्छा लेख है.....शायद इसे पढ़कर कट्टर वादी लोगों को थोडी समझ आये! मुझे समझ नहीं आता की हर धर्म ईश्वर के एक होने की बात कहता है....फिर भी अपने धर्म को श्रेष्ठ साबित करने की मनोवृत्ति क्यों है?

श्रद्धा जैन ने कहा…

bus aaj ke liye kuch aise hi vicharak aise hi sochne wale logon ki zarurat hai
jo soch ko sahi rasta de aur logon ko saaf sach dikhe aur bure logon ki burayiyan kisi ki soch ko prabhavit na kare sake
sahi samay par sarthak lekh

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी दी. जितनी तारीफ़ कि जाये कम है. आज ऐसे लेखों कि सख्त जरुरत है. यूं भी मैंने महसूस किया है कि कट्टरता केवल क्षणिक उन्माद है जबकि परस्पर सोहार्द हमारी जड़ों में है. इसलिए कोई भी कट्टरता हमारे आपसी सोहार्द कि जड़ें नहीं हिला सकती. जब तक आप जैसे जागरूक लोग हमारे बीच हैं.

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