तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों की तर्ज़ पर मीनारों और गुम्बदों को ऊँचा करने और सड़कों पर नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को इससे काफी चोट पहुँच रही है.सर्व-धर्म समभाव हमारी पहचान है.सदियों पुरानी इस रिवायत को हम यूँही खो जाने नहीं देंगे. इस मंच के मार्फ़त हमारा मकसद परस्पर एकता के समान बिदुओं पर विचार करना है.अपेक्षित सहयोग मिलेगा, विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो संवाद बनता है.





है राम के वजूद पे हिन्दुस्तां को नाज़

on सोमवार, 18 अगस्त 2008

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है राम के वजूद पर हिन्दुस्तां को नाज़
अहले नज़र समझते हैं इसको ईमाम-हिंद
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश, मुहब्बत में फ़र्द था।

इकबाल की इक नज़्म से

हम में से सारे लोग इस वितंडा से वाकिफ ज़रूर होंगे कि विभाजन में उर्दू शायर इकबाल की भी भूमिका रही है।
भले हमारे होंठ उनकी अमर रचना सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा गाते-गाते न थकते हों। लेकिन नानक, राम और भी कई भारतीय अमर vइभुतियों पर अपनी ज़बान में इस कवि ने जो श्रद्धांजली अर्पित की , इस सम्बन्ध में अधिकाँश लोग अनजान होंगे।

जन्नत का निशाँ: हिन्दुस्तां

इसी तरह हम ये तो खूब जानते हैं की मुस्लिम शासकों ने भयंकर अत्याचार किए मानो दूसरे धर्म के शासक अतिशय विनम्र होते हों.ये जान ने की कोशिश नहीं करते कि कितने muslim बादशाहों ने मठ और मंदिरों के लिए ज़मीने दीं थीं। मुस्लिम राज-सत्ता के ही काल में देश की पहली सेकुलर ज़बान हिन्दुस्तानी , तब उसे रेख्ता/लश्करी आदि कहा जाता था.आज ये प्यारी ज़बान उर्दू और हिन्दी के नाम से अपने-अपने नए संस्कार में परवरिश पा रही है।
इस पहली भाषा का पहला कवि हुआ है अमीर खुसरू
इस सूफी-कवि का जन्म १२५३ ई में हुआ था और १३४५ ई में इनकी मौत हो गई ।
ये शा
यर
अपने मुल्क से बेपनाह मुहब्बत करता था.इश्क़ की दीवानगी में हिन्दुस्तां के फूलों, झरनों, परिंदों और सूफियों -संतों पर केद्रित उसने फ़ारसी में कव-रचना भी की.मैं पाने मुल्क से क्यों मुहब्बत करता हूँ के सवाल में वोह ख़ुद कहते हैं:
यह मेरा वतन-अज़ीज़ है और पैगम्बर-इस्लाम की इक हदीस है की रो से अपने वतन से मुहब्बत हमारे अक़ीदे ईमान /आस्था ) का हिस्सा है। दूसरी वजह यह है की हिन्दुस्तां के ऊपर ही जन्नत है।
आप आगे लिखते हैं कि जब आदम ने खुदा के हुक्म की उदूली की तो उन्हें धरती पर भेज दिया गया.और वो जगह हिन्दुस्तां ही है.उन्हें हिन्दुस्तां इसलिए भेज दिया गया कि जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता और उपलब्धता के नज़रिए से हिन्दुस्तां अरब और दूसरे मुल्कों की धरती की अपेक्षा अधिक आरामदेह था।
आप देश को का जन्नत का निशाँ कहते थे। उन्हों ने इक परिंदे का भी भी ज़िक्र किया है जो जन्नत में होता है और वही परिंदा भारत में भी पाया जाता है। उन्हीं ने अपने पक्ष में इक और दलील दी है कि ईसायिओं के मुताबिक आदम को सांप ने बहकाया था और आदम के साथ सांप को भी धरती पर भेज दिया गया था। आप कहते हैं कि भारत में और मुल्कों की बनिस्बत सांप भी ज्यादा होते हैं।
उन्हें मलाल भी रहा कि अगर हिन्दुस्तानी फलों और फूलों का नाम विदेशी ज़बान में होता तो ये विश्व-विख्यात होते।









13 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस उम्दा आलेख के लिए.

Anil Pusadkar ने कहा…

bahut badhai.badhai

बालकिशन ने कहा…

बेहतरीन लेख और रोचक जानकारी के लिए आभार.

Satish Saxena ने कहा…

वाह शहरोज तुम ही बताओ कि भारत मां के मुस्लिम बच्चे भी हिंदू धर्म का उतना ही आदर करते हैं जितना कि एक हिंदू कर सकता है ! जिन लोगों का यह सोचना है कि कोई मुसलमान हिंदू धर्म की इज्ज़त नहीं करता उसके लिए यह रचना एक शानदार जवाब है ! आशा है की इससे कुछ सम्मानित साथियों की आँख से परदा जरूर उठेगा ! और हमारे मुस्लिम हिन्दी लेखक, अपनी जगह और इज्ज़त हिन्दी जगत में जरूर पाएंगे ! हिन्दी और हिन्दुस्तान हिन्दुओं का ही नही, सारे देशवासिओं का है , इस मिटटी पर इस भाषा पर हर धर्म मानने बालों का उतना ही अधिकार है जितना हिन्दुओं का ! एक दिन वह आएगा जब किसी शहरोज को अपनी ईमानदारी बताने की जरूरत इस देश में न रहेगी !

rakhshanda ने कहा…

बहुत शानदार पोस्ट...शुक्रिया

शोभा ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है। विचार करने की प्रेरणा देता है। बधाई

श्रद्धा जैन ने कहा…

Ameer khusro ji ko sunatha padha tha magar aaj aapne jo kuch bhi bataya wo sab naya tha
itni achhi jaankati batane ke liye shukriya
mujhe puri umeed hai ki sajha sarokaar jald hi logon ke dilo se mel hata dega aur mission achhe safal hoga

ye karvan roshni se bhara rahe dua yahi hai

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

क्या गजब लेखन है भाई ? हम तो आपके मुरीद हुए ! ईश्वर आपकी कलम की धार बनाए रक्खे ! और आपने अमीर खुसरू साहब पे निहायत ही शानदार शब्दों में जानकारी दी है ! बहुत बहुत धन्यवाद !

मुनीश ( munish ) ने कहा…

theek kaha aapne.

pallavi trivedi ने कहा…

sateesh ji se sahmat hoon...aapne khusro ji ke baare mein bhi nayi jaankari uplabdh karayi.

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

क्या कहूं! शब्द मौन हो गए हैं! गूंगे के गुड की तरह मैं भी उनका आस्वादन खुद ही कर लेना चाहता हूँ. क्योंकि बहार ऐसे राजनीतिक बाज़ बैठे हैं जो इन शब्दों को दूसरों तक नहीं पहुँचने देना चाहते. उनकी रोज़ी-रोटी का सवाल जो ठहरा!
फिर भी हमें इन बाजों से लड़ना तो पड़ेगा ही, ताकि सद्भाएना का अस्तित्वा बचा रहे. आपने ये लडाई छेड़ दी है तो देखियेगा हम जैसी बहुत सी चिडिया आपके पीछे-पीछे चल पड़ेंगी.
इस नेक काम में लगे रहिये

डॉ .अनुराग ने कहा…

bahut khoob....dost....

RAJ SINH ने कहा…

shokhiye hindu babeen,
koodin baburd aj khas -o-aam.

ram-e-man,hargiz na shud,
har chand guftam ram ram.

-ameer khusarov.

shahroz bhayee is rubayee ka maine ram ke bare me kabeer aur nanak aur tulasee ke saath ek audio taiyar kiya hai.jaldee hee AWAZ par sunenge.

Aap shandar kam kar rahe hain.

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