तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों की तर्ज़ पर मीनारों और गुम्बदों को ऊँचा करने और सड़कों पर नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को इससे काफी चोट पहुँच रही है.सर्व-धर्म समभाव हमारी पहचान है.सदियों पुरानी इस रिवायत को हम यूँही खो जाने नहीं देंगे. इस मंच के मार्फ़त हमारा मकसद परस्पर एकता के समान बिदुओं पर विचार करना है.अपेक्षित सहयोग मिलेगा, विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो संवाद बनता है.





आज़ादी पर श्रद्धा की बानगी

on गुरुवार, 14 अगस्त 2008

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विदिशा में जन्म और शिक्षा-दीक्षा भी यहीं। दूर-दूर तक साहित्य और अदब-ऐ-चमन की रानायिओं से वास्ता नहीं .लेकिन सिंगापूर पहुंचकर आपने अपनी कलम से जन्मजात शायरा होने की सनद हासिल कर ली.electrononics में m.sc. श्रद्धा वहाँ इक स्कूल में हिन्दी पढाती हैं और अरबी की विधा ग़ज़ल में शायरी करती हैं।
ये ऐसी शख्सियत की हामिल हैं जिनकी रगों में देश की गंगा-जमनी तहज़ीब खूबतर होती है.इनकी ज़बान न अरबी-फ़ारसी की तरफ़दार है और न ही तत्सम को गले लगाती है.आप छंदों और उरूज़ के मामले में भी सदाशयी दृष्टि अपनाती हैं.आप उर्दू की बहरों के अनुशासन को तो अपनाती ही हैं , हिन्दी के मात्रिक छंदों से भी गुरेज़ नहीं करतीं।
आज हम आज़ादी का JASHN मानते हैं।
लेकिन किन शर्तों पर ये दिन नसीब हुआ।
कुर्बानियां कितनी हुईं।
और आख़िर बटवारे का दर्द।
अब आप श्रद्धा से ही रूबरू हों।
-शहरोज़
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मौसम बदला, रुत बदली है, ऐसे नही दिलशाद हुए
हिंदू - मुस्लिम एक हुए जब, तब जाकर आज़ाद हुए

कितने अल्हड़ सपने थे जो दॉर–ए- सहर में टूट गये
कितने हँसमुख चेहरे रोए, कितने घर बर्बाद हुए

नहीं थी कोई जाति पाती, न ही दिलों में बँटवारा
हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई, धरम अभी ईजाद हुए

कुर्बानी शामिल उनकी भी, क्यूँ आज पराए कहलाए
कालिख इक चेहरे की "क़ौम" पे, हम इतने जल्लाद हुए

हाथ बढ़ाओ , गले लगाओ, भेद भाव अब जाने दो
नमन हमारा हो उनको, जो भारत की बुनियाद हुए

21 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!! श्रृद्धा जी का परिचय पढ़ना सुखद रहा. आभार आपका.

Udan Tashtari ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस की आपको बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Pragya ने कहा…

बहुत खूब श्रद्धा... तुम्हे पढ़ना हमेशा ही अच्छा लगता है..
बिल्कुल सच लिखा है,
उन महान लोगों को मेरा भी नमन...
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं...

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब श्रद्धा जी ! आपने चार चाँद लगा दिए ! श्र्द्धाजी को पढ़वाने के लिए शहरोज भाई का शुक्रिया और शुभकामनायें !

बेनामी ने कहा…

श्रद्धा जी, हो साकता हैं की मेरे विचार निराशा-वादी हों, लेकिन अफ़सोस की आपके विचारों से इतेफाक नही रखते मैंने तो अभी तक जितना पढा, जाना और महसूस किया वह यह हैं की 15 aug 1947 को देश आजाद नही हुआ बाटा गया, हमें आज़ादी पुर्न्स्वराज के सिधान्तों पर नही मिली, हमे आज़ादी शर्तों के आधार पर मिली. हमे हन्दू या मुसलमान होने के कारण आज़ादी मिली. हम 15 aug 1947 के बाद भाई नही रहे हम हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी हो गए.
और क्या अब भी हालत हमें आज़ादी का एहसास कराते हैं, मुझे तो नही 1975 मॆं बलराज सहानी ने कहा था जब से देश आज़ज हुआ हैं मैंने नेताओं ke सिवा कुछ भी नही देखा, आपने देखा हैं क्या???हैं कुछ कम ज़रूर हुए हैं , लेकिन क्या जब अंग्रेजों ने भारत मॆं रेल गाड़ी दौडाई , तब उनकी मंशा भारत की तरक्की थी क्या
थोडा लिखा हैं ज्यादा समझियेगा, असहमति के लिए स्वागत हैं

Sajeev ने कहा…

श्रधा जी बहुत बढ़िया लगा आपको यहाँ पाकर, एक बार फ़िर सही समय पर सार्थक ग़ज़ल

बेनामी ने कहा…

bahut khoob!

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप की भावनाओं से परिचित हूँ। सियासतदानों ने इस मुल्क को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं रक्खी है। सम्प्रदाय एक व्यक्तिगत मामला है। इसे किसी व्यवहार में आड़े नहीं आना चाहिए। वैसे भी निकट भविष्य में सभी धर्मों और संप्रदायों को अप्रासंगिक हो जाना है। ये बनाए गए हैं इन्सान के लिए, इन्सान इन के लिए नहीं बना है।

संत शर्मा ने कहा…

Bahut sahi likha hai, Bahut achcha

राजीव तनेजा ने कहा…

श्रधा जी की लेखनी से तो पहले से ही परिचय था...आज उनके बारे में और जानकर अच्छा लगा

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छी रचना, साथ ही श्रद्धा जी का परिचय पढना अच्छा लगा.

बेनामी ने कहा…

adbhut , adwitiya .....
mere bahin ka jawab nahi .....
main gorwanvint masoos karta hu

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नहीं थी कोई जाति पाती, न ही दिलों में बँटवारा
हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई, धरम अभी ईजाद हुए
.......
aaj isi ki zarurat hai,bahut achha likha
badhaai aur shubhkamnayen

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

shraddh jee
bahut achchha laga
aapki rachna padh kar.desh par aadharit ye poem, dil ko choone wali hai.

hamne 1947 ki 15 aug ko pahla independence manya is tarah ham 2008 me 62nd yani baasathwan swatantrta diwas mana rahe hain,
is 62 wen aazadi ke jashn ki badhai


नहीं थी कोई जाति पाती, न ही दिलों में बँटवारा
हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई, धरम अभी ईजाद हुए

aapka
vijay
jabalpur

अनिल रघुराज ने कहा…

शहरोज भाई, श्रद्धा की भावना बहुत निर्मल है। आपके ब्लॉगों पर पहली बार नजर डाली। अच्छा लगा, बहुत अच्छा। हमारे आपके साझा सरोकार लगते हैं। जमेगा साथ...

Unknown ने कहा…

क्या खूब लिखा है श्रद्धा ने ,श्रद्धा हिंदी ब्लोग्स पर एक ऐसी सख्शियत का नाम है ,जिनके लिए शब्दों के चक्र्युह्वा से बढ़कर संवेदनाओं का सफ़र मायने रखता है,बात चाहे दश की हो,प्रेम की हो या व्यक्तिगत कुंठा की या फिर जिजीविषा की ,ऐसे कवि हिंदी कविता मैं आज बहुत मुश्किल से दिखाई देते हैं ,अगर सीधे साधे शब्दों मे कहें तो ये सबकी कविता है |श्रद्धा के साथ साथ मित्र शहरोज को भी नमन ,सफ़र जारी रखें

श्रद्धा जैन ने कहा…

Sameer ji aapka bhaut bhaut shurkiya aapne padha

aapko bhi sawantrta diwas ki badhayi

श्रद्धा जैन ने कहा…

shukriya pragya bhaut achha lagta hai dost jab aapko aas pass dekhti hoon
isi tarah aap hamesha saath rahengi umeed karti hoon

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

नहीं थी कोई जाति पाती, न ही दिलों में बँटवारा
हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई, धरम अभी ईजाद हुए

shradha
aapne aik bar fir bahut marmik or sarthak rachna ki hai.
aapke jajbon ko slaam

hindibhasha ने कहा…

shraddha g ki baangi sachmuch kaabile taarif hai, hindustan ko ensi shakhsiyatoan par naaz hona chahiye jo hindustan se bahar jakar bhi hindi aur hindustani culture ko vahan ke logoan ko sikhakar achchha kaam kar rahi hai. Meri aur saare hindustan ki shubhkamnayein unke saath hain.
Dr. Harish Arora

hindibhasha ने कहा…

shraddha g ki baangi sachmuch kaabile taarif hai, hindustan ko ensi shakhsiyatoan par naaz hona chahiye jo hindustan se bahar jakar bhi hindi aur hindustani culture ko vahan ke logoan ko sikhakar achchha kaam kar rahi hai. Meri aur saare hindustan ki shubhkamnayein unke saath hain.
Dr. Harish Arora

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