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अल्लाह शब्द इलाह(पूज्य) से
बना है.ऋग्वेद १-१-२ में भी ईल शब्द का प्रयोग ईश्वर के लिए हुआ है.ईल का अर्थ भी पूज्यनीय होता है.
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जो मुसलमान किसी गैर-मुस्लिम नागरिक पर ज़ुल्म करेगा , उसके हक को मारेगा या उसकी चीज़ ज़बरदस्ती ले लेगा, तो मैं खुदा की अदालत में मुसलमान के विरुद्ध पेश होने वाले मुक़दमे में उस गैर-मुस्लिम नागरिक का वकील बनकर खड़ा हो जाऊँगा ।
--पैगम्बर हज़रत मुहम्मद स.
अगर कोई इसका ख्वाब देखता है कि सिर्फ़ उसीका धर्म बचा रह जाएगा और दूसरे धर्म नष्ट हो जायेंगे तो मैं दिल की गहराई से उस पर तरस ही खा सकता हूँ और यही बता सकता हूँ कि जल्द ही सभी धर्मों के ध्वजों पर, विरोध के बावजूद यह अंकित होगा कि लड़ाई नहीं दूसरों की सहायता, वैमनस्य नहीं बल्कि सद्भाव और शान्ति।
--विवेकानंद
युगद्रष्टा विवेकानंद दरअसल सत्य से पूरी तरह परिचित थे। वे धर्म के मूल को जानते थे। मनुष्यत्व के प्रति आध्यात्मिकता, इसके अर्थ का उन्हें ज्ञान था । वे सच्चे अर्थों में ज्ञानी थे। वह जानते थे की वेद और कुरआन दोनों एकेश्वरवाद की शिक्षा देते हैं ।
वेद का उद्घोष है:
इक सदविप्रा:बहुधा वदन्ति
कुरआन का फ़रमान है:
वहदहु ला शरीक
आज हम धर्म के यथार्थ पक्ष से बिल्कुल अंजान हैं और अज्ञानतावश धर्म-सम्प्रदाय के नाम पर देश-समाज में वैमनस्य, नफरत और हिंसा को प्रश्रय दे रहे हैं।
इस्लाम के कथित जिहादियों को अपने प्यारे नबी का ऊपर दिया क़ोल ज़रूर पढ़ना चाहिए और जेहन-नशीं कर लेना चाहिए जो दीन का परचम बेक़सूर बच्चों , महिलाहों और पुरुषों की लाशों पर गाड़ना चाहते हैं।
सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ हैं वेद और पुराण जिसकी शिक्षा है : वसुधव कुटुम्बकम सर्व सुखिन
कुरआन कहती है: अलहम्दो लील-लाहे रब्बिल-आलमीन यानी तमाम प्रशंसाएं अल्लाह के लिए है जो सम्पूर्ण संसार का पालनेवाला है. वहीँ ऋग्वेद में लिखा है:माहि देवस्य सवितु :पारिष्टति: अर्थात इस संसार के बनने वाले के लिए प्रशंसा है।
कुरआन में दर्ज है:अर्रहमान इर्रहीम (जो पालनहार और कृपालु है )
ऋग्वेद में अंकित है:वसुर्द्यमान :(जो देनेवाला और कृपालु है )
कुरआन आगे कहती है:एह्दिनस सिरातल मुस्तक़ीम (सच्चे मार्ग का पथ-प्रदर्शक बन)
तो ऋग्वेद हमें बताता है:नय सुपथा राये अस्मान
विवेकानद ने कहा था , वेद की ओर लौटो
लेकिन आज हम न वेद की ओर हैं , न ही कुर्रान और दूसरे धार्मिक ग्रंथों की ओर।
हाँ अपने मतलब की चीज़ें उसमें से निकालकर उसका ग़लत-सलत अर्थ मनमाफिक लगाने की कुचेष्टा हम अवश्य करते हैं.और झूठे दंभ में जीते हैं।
नोट:पोस्ट में फॉण्ट के कारण वर्तनी में हुई अशुद्धिओं को सुधारकर पढ़ें।
समय-समय पर और भी वांछित बिन्दुओं पर यहाँ चर्चा करने का इरादा है.
13 टिप्पणियाँ:
achchi shuruaat hai.aaj inhin baaton ki chrcha khoob-khoob karne ki zaroorat hai.
blog ko zinda rakhenge, ummid hai,
dheron nek kaamnaayen.
आप का यह ब्लाग देख कर प्रसन्नता ही नहीं, वास्तविक आनंद की अनुभूति हुई। विवेकानंद वे दार्शनिक थे जिन्होंने सारी मानवता, सारे धर्मों और सारे मानवों को एक साथ, एक ईश्वर के साथ देखना चाहा।
उन से तेरह सौ वर्ष पूर्व पैगम्बर मुहम्मद ने भी यही चाहा था।
लेकिन आप का यह कहा कि...
"इस्लाम के कथित जिहादियों को अपने प्यारे नबी"
एक यथार्थ नहीं एक सदिच्छा मात्र है।
काश, जिहादियों को नबी से प्यार हो जाए,
और आप की, मेरी सदिच्छा पूर्ण हो।
बहुत अच्छा लगा आपको पढ़कर.
शहरोज़ जी आपके विचारों और लेखों की ज़रूरत हिन्दुस्तान को ही नहीं बल्कि सारी दुनिया को है. छोटा सही पर बहुत सुंदर आलेख है. लिखते रहिये.
आपने इसके बारे में तो बताया ही नही, एक बेहद ख़ूबसूरत ब्लॉग और गज़ब का किया गया कार्य, मेरे लायक कोई भी कार्य हो तो बताइयेगा ! मेरी शुभकामनायें !
शहरोज़ जी ! वेद के श्लोक और कुरान की आयतें तो धार्मिक हैं पर उसके अनुयायी हम धर्मांध होते जा रहे हैं !
इस कट्टरपन के खिलाफ आपका लेखन सराहनीय है !आगे भी चर्चा जारी रखें , विषय बहुत सार्थक और समयानुकूल चुना है आपने !
बहुत दिनों से इस विषय को लेकर खुद से लड़ता रहता था. कोई रह नहीं सूझ रही थी की क्या करुँ. बस एक बेचैनी सी रहती थी कि धर्म के नाम पर कब तक अधर्म होता रहेगा.
आपके इस ब्लॉग को देख कर कितनी सुखद अनुभूति हुई, ब्यान नहीं कर सकता. बस ये मान कर चलिए कि जैसे रेगिस्तान के प्यासे को कोई बूँद मिल जाये.
ये सुकून भी कि जब भी दिल बेचैन होगा तो आप रह दिखाने के लिए ब्लॉग पर मौजूद होंगे.
ये ब्लॉग वक़्त कि जरूत ही नहीं बल्कि हम सब के लिए भी जरूरी था.
ऐसा ब्लॉग बनाने के लिए शुक्रिया.
the writer is writing this without any confusion about subject, it shows his command on both streams....islaam and hindutv,..the writer is following the religion of humanity.....very beautyful essay.......
the writer is writing this without any confusion about subject, it shows his command on both streams....islaam and hindutv,..the writer is following the religion of humanity.....very beautyful essay.......
Main kya kahun
bus sukh mila hai to moun hoon
kuch pal to sakun ke yahi milenge
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"वेद कुरआन : बहुत कुछ समान"
बडा ही उमदा लिखा है आपने। आप अपने मकसद में कामयाब रहें दुआ है।मेरी एक कविता आपके ब्लोग को समर्पित करती हुं।
हज़ारों नाम वाले
दाता तेरे हज़ारों है नाम...(2)
कोइ पुकारे तुज़े कहेकर रहिम,
और कोइ कहे तुज़े राम।...दाता(2)
क़ुदरत पर है तेरा बसेरा,
सारे जग पर तेरा पहेरा,
तेरा ‘राज़’बड़ा ही गहेरा,
तेरे ईशारे होता सवेरा,
तेरे ईशारे हिती शाम।...दाता(2)
ऑंधी में तुं दीप जलाये,
पथ्थर से पानी तुं बहाये,
बिन देखे को राह दिख़ाये,
विष को भी अमृत तु बनाये,
तेरी कृपा हो घनश्याम।...दाता(2)
क़ुदरत के हर-सु में बसा तु,
पत्तों में पौन्धों में बसा तु,
नदीया और सागर में बसा तु,
दीन-दु:ख़ी के घर में बसा तु,
फ़िर क्यों में ढुंढुं चारों धाम।...दाता(2)
ये धरती ये अंबर प्यारे,
चंदा-सुरज और ये तारे,
पतज़ड हो या चाहे बहारें,
दुनिया के सारे ये नज़ारे,
देख़ुं मैं ले के तेरा नाम।...दाता(2)
aapke vichaaron ne mujhe prabhawit kiya hai, hum kahin nahi hain,bas kahne maatra ke liye sabkuch hai.....bahut vichaarshil blog banaya hai,
badhaai
शहरोज़ जी
आप का आभार इतनी उम्दा पोस्ट के लिए
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