तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों की तर्ज़ पर मीनारों और गुम्बदों को ऊँचा करने और सड़कों पर नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को इससे काफी चोट पहुँच रही है.सर्व-धर्म समभाव हमारी पहचान है.सदियों पुरानी इस रिवायत को हम यूँही खो जाने नहीं देंगे. इस मंच के मार्फ़त हमारा मकसद परस्पर एकता के समान बिदुओं पर विचार करना है.अपेक्षित सहयोग मिलेगा, विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो संवाद बनता है.





रिजवाना : संस्कृत की नयी इबारत

on गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

रिजवाना परवीन का साधिकार संस्कृत बोलना, इसे बस कर्मकांड की भाषा में ढाल चुके आभामंडित विद्वानों के लिए भी चुनौती है। यह संस्कृत शिक्षिका भाषायी संगम की, इसलिए साझा विरासत और साझा देश प्रेम की भी अनूठी मिसाल है। संस्कृत के बहुत जटिल व्याकरणीय...

काश मिले मंदिर में अल्लाह मस्जिद में भगवान मिले.

on मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

* अल्लाह के लिए न तुम भगवान के लिए लड़ना है तो लड़ो सदा इन्सान के लिए हर धर्म है महान हर मज़हब में बड़प्पन लेकिन नहीं है अर्थ कुछ शैतान के लिए अपना ये घर संवारो मगर ध्यान तुम रखो हम वक्त कुछ निकालें इस जहान के लिए * सुबह मोहब्बत शाम महब्बत अपना...

भगवान् की हांडी!

on शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

संस्कृति के चार अध्याय जैसी अमर-कृति के रचयिता और अपने समय के चर्चित लेखक-कवि रामधारी सिंह दिनकर की इधर तीन पुस्तक पढने का सुयोग मिला.पुस्तकें हैं: स्वामी विवेकानंद, हे राम! और लोकदेव नेहरू.मैं उन्हीं पुस्तकों के हवाले से आज बात करूंगा.उन्हों ने...
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