महिना हो आया.अब वक़्त ने मुहलत दी.यूं तंत्र ने मुझे रोकने की शपथ ले रखी थी.आज जनेयू के भाई रागिब के मेल ने इस पोस्ट के लिए विवश कर दिया.उन्होंने secularjnu का लिंक भेजा है.जब क्लीक किया तो इस नज़्म पर नज़र जा टिकी.भाई रागिब फोन पर अनुपलब्ध हैं अभी.वरना उन्हें मुबारकबाद ज़रूर देता.बहरहाल इस नज़्म का लुत्फ़ आप ज़रूर लें.ये लुत्फ़ चिंतन तू की मांग करता है. -सं------------------------------------------------------------------------------तू भी हिंदू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँ राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँतू भी हिंदू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँतेरे हाथों में भी त्रिशूल है गीता की जगहमेरे हाथों में भी तलवार है कुरआन कहाँतू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊँ इल्जामऐसे आलम में भला अम्न का इम्कान कहाँआज तो मन्दिरो मस्जिद में...
छैला संदु पर बनी फिल्म को लेकर लेखक-फिल्मकार में तकरार
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मंगल सिंह मुंडा बोले, बिना उनसे पूछे उनके उपन्यास पर बना दी
गई फिल्म, भेजेंगे लिगल नोटिस जबकि निर्माता और निर्देशक का
लिखित अनुम...
8 वर्ष पहले