रास्ते भले अलग-अलग हों, मंजिल नहीं। 'रबबुल आलमीन'-[खुदा पूरी दुनिया का है] और ईश्वर भी एक है जिसे सभी मतावलंबी अलग-अलग रूप में व्याख्यायित करते है-यं शैवा समुपासते..।
ऐसे लोग भी है जो मानते है कि संस्कृत में इबादत कर लेने से खुदा और अरबी में प्रार्थना कर लेने से भगवान नाराज नहीं होगा। भाषाओं को बहुत कडे़ मजहबी यकीन के खांचों में न बांटकर उसे सभ्यता और संस्कृति [धर्म नहीं] की नजर से बरतने के कुछ साहसी मिजाजों का नुमाइंदा बन चुकी है, जहानाबाद की रिजवाना परवीन।
मध्य विद्यालय काको में पढ़ा रहीं रिजवाना परवीन का साधिकार संस्कृत बोलना, इसे बस कर्मकांड की भाषा में ढाल चुके आभामंडित विद्वानों के लिए भी चुनौती है। यह संस्कृत शिक्षिका भाषायी संगम की, इसलिए साझा विरासत और साझा देश प्रेम की भी अनूठी मिसाल है। संस्कृत के बहुत जटिल व्याकरणीय संरचना और दो से तीन पदों तक की लंबाई के एक वाक्य वाले श्लोकों का मानक उच्चारण के साथ उनका सस्वर पाठ चकित कर देता है।
1978 में संस्कृत शिक्षक के रूप में अपनी नियुक्ति काल से ही रिजवाना ने इस भाषा के अध्ययन और अध्यापन की अलख जगा रखी है। इस भाषा का सांस्कृतिक असर उनके परिवार पर भी दिखता है। अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे उनके बच्चे भी इस भाषा के अच्छे जानकार हैं।
एक पारंपरिक मुसलमान परिवार की रिजवाना का लगभग चार दशक पूर्व संस्कृत में शिक्षा हासिल करना किसी क्रांतिकारी कदम से कम नहीं था। ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी रिजवाना ने 1971 में पटना के एक बोर्डिग स्कूल में दाखिला लेकर तो सबको चौंका ही दिया।
उन्होंने पटना स्थित एक स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उर्त्तीण की। इस परीक्षा में संस्कृत के प्रति उनके स्वाभाविक लगाव के कारण सर्वाधिक नम्बर आये। परंपरावादियों को अभी और चौंकना था। स्कूल में ही वे स्काउट्स एवं गाइड्स में भर्ती हों गयी। उन्होंने यहां भी अपनी प्रतिभा बिखेरी।
रिजवाना को स्काउट्स में उत्कृष्ट कार्यो के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति वी. बी. गिरी ने प्रमाण पत्र देकर पुरस्कृत भी किया।
संस्कृत भाषा से अपने लगाव का श्रेय वे स्थानीय नर्स ताजमणि को देती हैं। उन्होंने बताया कि उनकी ही प्रेरणा से वे बोर्डिग स्कूल में भी भर्ती हुयीं। ताजमणि ने ही उनके पिता को उन्हें आगे की शिक्षा के लिए प्रेरित किया। रिजवाना बताती हैं कि 1973 में संस्कृत विषय के साथ मैट्रिक पास करने के बाद उनका इस भाषा के प्रति लगाव बढ़ता ही गया।
उन्होंने सोचा कि क्यों न इस सुन्दर भाषा से अन्य लोगों को परिचित कराया जाये। उन्होंने बताया कि इसी उद्देश्य से उन्होंने टीचर्स ट्रेनिंग की तथा संस्कृत शिक्षक के रूप में अपने कैरियर को आयाम दिया।
चलो रोते हुए बच्चों को हंसाया जाये-उन्होंने बस एक चीज पकड़ी है और सारे मजहब इसकी ताईद हैं- आदमीयत, दया-करुणा और प्रेम। इंसानियत के इन्हीं घटकों को लेकर बना है उनका व्यक्तित्व। वह गरीब व अनाथ बच्चियों को स्कूली किताब और जरूरी कपड़े तक मुहैया कराती हैं। चार अनाथ बच्चे तो बस उनकी ही मुहब्बत पर पल रहे है।
जागरण में जहानाबाद [मध्य बिहार से] शशिकांत
4 टिप्पणियाँ:
bahut achcha kaam kar rahi hai raizwana ji
itni achchi jaankari dene ke liye shukriya
waqayi is tarah ka kadan krantikaari hai
बहुत अच्छी शख्शियत से परिचय कराया आपने, शुक्रिया शहरोज़ भाई ! आशा है अब साझा सरोकार चलता रहेगा !
nice post!
shahroz sahab is tarah ke lekh ke liye ap mubarakbad ke mustahaq hain bahut zaroorat hai samaj ko inki ,agar apni ganga jamni tahzeeb bachani hai to hamen bhashayi vivadon
dharmik vivadon aur ''apna pradesh'' se hat kar ''apne hindostan'' ke bare men sochna hoga.aur ap is raah par qadam badha chuke hain khuda ap logon ko kamyab kare
एक टिप्पणी भेजें