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शाहजहांपुर जिले के गाँव गढिया रंगी में १५ दिसम्बर १९५४ को जन्मे
सतीश सक्सेना पेशे से सिविल इंजिनियर हैं.फिलहाल केन्द्र में सरकारी मुलाजिम हैं।
समाज की सेवा करना इनकी फितरत में शामिल है तो साहित्य इनका शौक .लेकिन इनका साहित्यिक लेखन भी जन-सेवा की ही श्रेणी में शुमार होता है। कुछ ग़ज़ल कुछ गीत !,मेरे गीत ! aur लाइट ले यार ! के मार्फ़त आप इनसे मुलाक़ात कर सकते हैं।
अपने बारे में उनका कहना है:
अपने बारे में लिखना बेहद मुश्किल कार्य है ....जब से होश संभाला, इस दुनिया में अपने आप को अकेला पाया ! माता, पिता,भाई कैसे होते हैं यह सिर्फ़ दोस्तों या अन्य रिश्तेदारों के घर ही देखा है! इतना छोटा था की उनका चेहरा भी याद नही ! शायद इसलिए दुनिया के लिए अधिक संवेदनशील तथा भावुक हूँ ! कोई भी व्यक्ति अपने आप को अकेला महसूस न करे, इस ध्येय की पूर्ति के लिए कुछ भी, कहीं भी और किसी समय भी तैयार रहता हूँ ! बाकी, बड़ा हुआ तो दुनिया ने बहुत कुछ सिखा दिया ! मगर अकेला होने से, संघर्ष क्षमता अपने आप ही आयी और विद्रोही स्वभाव , अन्याय से लड़ने की इच्छा, लोगों की मदद करने में सुख मिलने लगा निरीहता, किसी से कुछ मांगना, झूठ बोलना बिल्कुल पसंद नही !
- जिनका कोई न हो ऐसे लोगों की मदद के लिए एक स्माल ट्रस्ट आंचल का होल्डिंग ट्रस्टी एवं चेयरमैन होने के नाते लोगों की सेवा करने के मौके मिलते रहते है !
-नियमित रक्तदान करना अच्छा लगता है, मृत्यु उपरांत शरीर के सारे अंग दान कर रखे हैं!
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हिन्दुस्तान की एक बच्ची ने एक शानदार लेख " हम एक हैं,तो एक होने से डरते क्यों हैं? " लिखा है, जिसे पढ़ कर दिल वाह वाह कर उठा ! मुझे याद है, वर्षों पहले मैं बिभिन्न आयोजनों एवं ट्रेड यूनियन मूवेमेंट्स के अवसर पर एक नारा देता रहा हूँ - आवाज दो - हम एक हैं ! अब यह हमारी अपनी लड़की कह रही है कि अगर हम एक हैं तो मिलते क्यों नही, पहचानते क्यों नही और जानने की कोशिश क्यों नहीं करते ! एक तीखा उलाहना हमें, अपने बड़े भाइयों को, याद दिलाने की कोशिश के लिए ! फिर यह सच्चाई मानने में डर क्यों की हम ने कभी अपने इन छोटे भाइयों के बारे में जानने की कोशिश नही की, जो अखबार एवं अन्य साधन बताते रहे, वही सच मान लिया गया ! अगर हमें किसी के बारे में जानने की उत्कंठा है तो पहले उसकी संस्कार और संस्कृति समझनी और जाननी पड़ेगी ! यह सच है की बहुसंख्यकों के स्कूल में साथ पढने से ये बच्चे हिंदू संस्कार एवं त्योहारों के बारे में काफी जानते और समझाते है, मगर मुझे नहीं लगता की हमारे बच्चे भी मुस्लिम त्योहारों या उनके महापुरुषों के बारे में जानते होंगे !
अपने अहसास और तकलीफ को बयां करना बेहद मुश्किल काम होता है और उससे भी अधिक मुश्किल होता है दूसरे की तकलीफ समझना और महसूस करना !यह हर एक के बस की बात ही नही! इस तकलीफ को समझाने के लिए साझा सरोकार चाहिए, एक जज्बा चाहिए जिसमे अपने घर से भेद भावः मिटाने की तमन्ना हो ! और यह काम हम लेखकों का होना चाहिए की वे इमानदारी के साथ सच को सच कहने की हिम्मत कर सकें ! और शुरुआत करें ईमानदारी के साथ गलती को महसूस करने की, जहाँ तक बात पहल करने की है, बड़े होने के नाते पहल हमें ही करनी चाहिए !
यह सच है की अधिकतर लोगो को मुस्लिम त्योहारों के बारे में कुछ नहीं मालूम और सीखने का प्रयत्न भी करें तो आपसी झिझक और दोनों पक्षों का तंगदिल नजरिया खुल कर बात ही नहीं करने देता ! आज भी इतने वर्षों के बाद कस्बों और शहरों में मोहल्ले बँटे हुए हैं, दुकाने, रिक्शे, और तांगे तक बंटे हुए हैं और हम स्वतंत्रता दिवस पर कह रहे हैं कि आवाज़ दो हम एक हैं ! और वह भी सिर्फ़ एक दिन कहने के लिए !
बहुत काम करना है इस विषय पर, और यह काम करने के लिए पहल करनी चाहिए लेखक वर्ग को ! जो ईमान दार हों वो आगे आकर हमारे घरों में गहरी जड़ जमाये इस बबूल ब्रक्ष को उखाड़ने का प्रयत्न करें ! तो देश ऋणी रहेगा अपने इन लेखक पुत्रों पर कि चलो कुछ तो अच्छा लिखा गया और अपने घर के लिए लिखा गया ! शहरोज का लेख साझा-सरोकार saajha-sarokaar पर छपे " है राम के वजूद पे हिन्दुस्तां को नाज़ " हो या रख्शंदा का " हम एक हैं,तो एक होने से डरते क्यों हैं? " हर एक लेख में एक ही चीत्कार है कि हम तुम्हारे हैं हमें अपना मानो ! हम हिन्दुस्तानी हैं, हिन्दुस्तानी रहेंगे और हिन्दुस्तानी मरेंगे ! हम चाहते हैं कि हमारे त्यौहार एक साथ मनाये जायें ! इसकी हर लाइन कह रही है कि श्री राम का आदर हम आपसे अधिक करते हैं और आइये आपको हम अपने इमाम्स एवं हज़रत साहेब के बारे में सब कुछ बताएं ! आइये हम आपको इस्लाम के अदब और कायदा के बारे में बताएं और हमारा यकीन करें की आप को बहुत अच्छा लगेगा !
और मेरा यकीन है कि एक बार आपको यह सब जानने के बाद लगने लगेगा कि इतनी भारी ग़लतफ़हमी और वह भी इतने लंबे समय से, कैसे चली आ रही थी ! और कारण जानने की कोई जरूरत भी नही है, जरूरत है सिर्फ़ ग़लतफ़हमी मिटाने की और दिमाग से सुने सुनाये,पढ़े पढाये अक्स मिटाने की ! जरूरत है अविश्वास छोड़ कर फैले हुए हाथों की और बढ़ कर उन्हें आगोश में लेने की !

सतीश सक्सेना पेशे से सिविल इंजिनियर हैं.फिलहाल केन्द्र में सरकारी मुलाजिम हैं।
समाज की सेवा करना इनकी फितरत में शामिल है तो साहित्य इनका शौक .लेकिन इनका साहित्यिक लेखन भी जन-सेवा की ही श्रेणी में शुमार होता है। कुछ ग़ज़ल कुछ गीत !,मेरे गीत ! aur लाइट ले यार ! के मार्फ़त आप इनसे मुलाक़ात कर सकते हैं।
अपने बारे में उनका कहना है:
अपने बारे में लिखना बेहद मुश्किल कार्य है ....जब से होश संभाला, इस दुनिया में अपने आप को अकेला पाया ! माता, पिता,भाई कैसे होते हैं यह सिर्फ़ दोस्तों या अन्य रिश्तेदारों के घर ही देखा है! इतना छोटा था की उनका चेहरा भी याद नही ! शायद इसलिए दुनिया के लिए अधिक संवेदनशील तथा भावुक हूँ ! कोई भी व्यक्ति अपने आप को अकेला महसूस न करे, इस ध्येय की पूर्ति के लिए कुछ भी, कहीं भी और किसी समय भी तैयार रहता हूँ ! बाकी, बड़ा हुआ तो दुनिया ने बहुत कुछ सिखा दिया ! मगर अकेला होने से, संघर्ष क्षमता अपने आप ही आयी और विद्रोही स्वभाव , अन्याय से लड़ने की इच्छा, लोगों की मदद करने में सुख मिलने लगा निरीहता, किसी से कुछ मांगना, झूठ बोलना बिल्कुल पसंद नही !
- जिनका कोई न हो ऐसे लोगों की मदद के लिए एक स्माल ट्रस्ट आंचल का होल्डिंग ट्रस्टी एवं चेयरमैन होने के नाते लोगों की सेवा करने के मौके मिलते रहते है !
-नियमित रक्तदान करना अच्छा लगता है, मृत्यु उपरांत शरीर के सारे अंग दान कर रखे हैं!
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हिन्दुस्तान की एक बच्ची ने एक शानदार लेख " हम एक हैं,तो एक होने से डरते क्यों हैं? " लिखा है, जिसे पढ़ कर दिल वाह वाह कर उठा ! मुझे याद है, वर्षों पहले मैं बिभिन्न आयोजनों एवं ट्रेड यूनियन मूवेमेंट्स के अवसर पर एक नारा देता रहा हूँ - आवाज दो - हम एक हैं ! अब यह हमारी अपनी लड़की कह रही है कि अगर हम एक हैं तो मिलते क्यों नही, पहचानते क्यों नही और जानने की कोशिश क्यों नहीं करते ! एक तीखा उलाहना हमें, अपने बड़े भाइयों को, याद दिलाने की कोशिश के लिए ! फिर यह सच्चाई मानने में डर क्यों की हम ने कभी अपने इन छोटे भाइयों के बारे में जानने की कोशिश नही की, जो अखबार एवं अन्य साधन बताते रहे, वही सच मान लिया गया ! अगर हमें किसी के बारे में जानने की उत्कंठा है तो पहले उसकी संस्कार और संस्कृति समझनी और जाननी पड़ेगी ! यह सच है की बहुसंख्यकों के स्कूल में साथ पढने से ये बच्चे हिंदू संस्कार एवं त्योहारों के बारे में काफी जानते और समझाते है, मगर मुझे नहीं लगता की हमारे बच्चे भी मुस्लिम त्योहारों या उनके महापुरुषों के बारे में जानते होंगे !
अपने अहसास और तकलीफ को बयां करना बेहद मुश्किल काम होता है और उससे भी अधिक मुश्किल होता है दूसरे की तकलीफ समझना और महसूस करना !यह हर एक के बस की बात ही नही! इस तकलीफ को समझाने के लिए साझा सरोकार चाहिए, एक जज्बा चाहिए जिसमे अपने घर से भेद भावः मिटाने की तमन्ना हो ! और यह काम हम लेखकों का होना चाहिए की वे इमानदारी के साथ सच को सच कहने की हिम्मत कर सकें ! और शुरुआत करें ईमानदारी के साथ गलती को महसूस करने की, जहाँ तक बात पहल करने की है, बड़े होने के नाते पहल हमें ही करनी चाहिए !
यह सच है की अधिकतर लोगो को मुस्लिम त्योहारों के बारे में कुछ नहीं मालूम और सीखने का प्रयत्न भी करें तो आपसी झिझक और दोनों पक्षों का तंगदिल नजरिया खुल कर बात ही नहीं करने देता ! आज भी इतने वर्षों के बाद कस्बों और शहरों में मोहल्ले बँटे हुए हैं, दुकाने, रिक्शे, और तांगे तक बंटे हुए हैं और हम स्वतंत्रता दिवस पर कह रहे हैं कि आवाज़ दो हम एक हैं ! और वह भी सिर्फ़ एक दिन कहने के लिए !
बहुत काम करना है इस विषय पर, और यह काम करने के लिए पहल करनी चाहिए लेखक वर्ग को ! जो ईमान दार हों वो आगे आकर हमारे घरों में गहरी जड़ जमाये इस बबूल ब्रक्ष को उखाड़ने का प्रयत्न करें ! तो देश ऋणी रहेगा अपने इन लेखक पुत्रों पर कि चलो कुछ तो अच्छा लिखा गया और अपने घर के लिए लिखा गया ! शहरोज का लेख साझा-सरोकार saajha-sarokaar पर छपे " है राम के वजूद पे हिन्दुस्तां को नाज़ " हो या रख्शंदा का " हम एक हैं,तो एक होने से डरते क्यों हैं? " हर एक लेख में एक ही चीत्कार है कि हम तुम्हारे हैं हमें अपना मानो ! हम हिन्दुस्तानी हैं, हिन्दुस्तानी रहेंगे और हिन्दुस्तानी मरेंगे ! हम चाहते हैं कि हमारे त्यौहार एक साथ मनाये जायें ! इसकी हर लाइन कह रही है कि श्री राम का आदर हम आपसे अधिक करते हैं और आइये आपको हम अपने इमाम्स एवं हज़रत साहेब के बारे में सब कुछ बताएं ! आइये हम आपको इस्लाम के अदब और कायदा के बारे में बताएं और हमारा यकीन करें की आप को बहुत अच्छा लगेगा !
और मेरा यकीन है कि एक बार आपको यह सब जानने के बाद लगने लगेगा कि इतनी भारी ग़लतफ़हमी और वह भी इतने लंबे समय से, कैसे चली आ रही थी ! और कारण जानने की कोई जरूरत भी नही है, जरूरत है सिर्फ़ ग़लतफ़हमी मिटाने की और दिमाग से सुने सुनाये,पढ़े पढाये अक्स मिटाने की ! जरूरत है अविश्वास छोड़ कर फैले हुए हाथों की और बढ़ कर उन्हें आगोश में लेने की !