२५ सितम्बर को फिरदौस ने लगता है अत्यन्त दुखी होकर एक पोस्ट लिखी " मार दो गोली, हिन्द के तमाम मुसलमानों को" उनके जवाब में बहुत से जागरूक साथियों ने प्रतिक्रियाएं दीं !
डॉ सुभाष भदौरिया, अपने देश भक्ति पूर्ण विचारों को व्यक्त करने के लिए मशहूर , एक बेहद तीखे ब्लागर, का, फिरदौस के उपरोक्त पोस्ट पर जाकर निम्न कमेंट्स देना ...
"कैसे कह दें कि तुम पराये हो,
तुम से नाता बहुत पुराना है।
तुम दिवाली पे अब के आ जाइयो,
ईद पे हम को अब के आना है।
आप की पोस्ट रुला गयी। ऐसी दिल तोड़ने वाली बातें मत कहिये "
डॉ सुभाष भदौरिया की हार्ड लायनर छबि और ऐसी मार्मिक अपील की पोस्ट लिखना , जैसे कोई सगा भाई, अपनी रोती हुई बहिन को मनाने की कोशिश कर रहा हो......
मैं भौचक्का रह गया , और अपने उस निर्णय के प्रति, जब कुछ लेख पढ़कर , मैंने डॉ सुभाष भदौरिया के ब्लाग पर ना जाने का फ़ैसला किया था ! हम कितने मूर्ख होते हैं कि दूसरे को ग़लत मानने से पहले, उसको अपना स्पष्टीकरण देने का मौका भी नही देते ! सोचने का सबका अपना नजरिया होता है और हमें विरोध का भी सम्मान करना आना चाहिए !
अपनी मूर्खता पर पछताते हुए हुए डॉ भदौरिया को मैंने यह मेल लिखा ...
" फिरदौस के ब्लॉग पर आपके यह कमेंट्स पढ़ कर यकीन नही हुआ कि यह वाक्य आपके ही हैं ! अतः दिल किया कि पहले मैं आपके प्रति ग़लत विचार रखने के लिए, आपसे क्षमा मांग लूँ !...बहुत पहले एक बार आपके ब्लॉग पर आया था, आपका लिखा कुछ पढ़ कर, आपके व्यक्तित्व के बारे में धारणा बना कर यहाँ से गया था, उसके बाद आपके ब्लाग पर नही आया ! हम लोग अक्सर यही गलती करते हैं, और अगर गलती का अहसास भी हो जाए तो भी गलती कभी नही मानते ! "
सुभाष जी का तुंरत जवाब आ गया !
"सतीशजी मैं पहले याहू पर लिखता था कुछ मित्रों के सुझाव से कि गुग्गल पर प्राया हिन्दी के रचनाकार हैं यहाँ विचारविनमय होगा इस दृष्टि से गुग्गल पर ही लिखने लगा। यहाँ देखा कि लोग खेमें में बँटे हुए आत्मरत हैं. जिस ग़ज़ल के अशआर आपने फिरदौस के ब्लाग पर पढ़े ये ग़ज़ल याहू पर इस पते पर प्रकाशित है. आपने मेरे बारें में धारणा बदली,अच्छी बात हैं.आप सह्रदय रचनाकार हैं आपके ब्लाग पर जाकर देखा तो ज्ञात हुआ.
पर हमारी सह्रदयता को कायरता मान कोई हिमाकत पर हिमाकत करता जाये तो रोष आता ही है।मैथलीशरणगुप्त ने जयद्रथ-वध खंड काव्य में सच ही कहा है-
निज शत्र का साहस कभी बढ़ने न देना चाहिए
बदला समर में बैरियों से शीघ्र लेना चाहिए।
पापीजनों को दंड देना चाहिए सचमुच सदा,
वरवीर क्षत्रियवंश का कर्तव्य है ये सर्वदा।
आपने टिप्पणी के माध्यम से मुझे याद किया। कृतज्ञ हूँ श्रीमान। "
डॉ सुभाष भदौरिया जैसे बड़े दिल वाले इंसान ही हमारे देश की शान हैं ! ऐसे लोगों के कारण हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों के साथ फलता फूलता रहेगा !
डॉ सुभाष भदौरिया, अपने देश भक्ति पूर्ण विचारों को व्यक्त करने के लिए मशहूर , एक बेहद तीखे ब्लागर, का, फिरदौस के उपरोक्त पोस्ट पर जाकर निम्न कमेंट्स देना ...
"कैसे कह दें कि तुम पराये हो,
तुम से नाता बहुत पुराना है।
तुम दिवाली पे अब के आ जाइयो,
ईद पे हम को अब के आना है।
आप की पोस्ट रुला गयी। ऐसी दिल तोड़ने वाली बातें मत कहिये "
डॉ सुभाष भदौरिया की हार्ड लायनर छबि और ऐसी मार्मिक अपील की पोस्ट लिखना , जैसे कोई सगा भाई, अपनी रोती हुई बहिन को मनाने की कोशिश कर रहा हो......
मैं भौचक्का रह गया , और अपने उस निर्णय के प्रति, जब कुछ लेख पढ़कर , मैंने डॉ सुभाष भदौरिया के ब्लाग पर ना जाने का फ़ैसला किया था ! हम कितने मूर्ख होते हैं कि दूसरे को ग़लत मानने से पहले, उसको अपना स्पष्टीकरण देने का मौका भी नही देते ! सोचने का सबका अपना नजरिया होता है और हमें विरोध का भी सम्मान करना आना चाहिए !
अपनी मूर्खता पर पछताते हुए हुए डॉ भदौरिया को मैंने यह मेल लिखा ...
" फिरदौस के ब्लॉग पर आपके यह कमेंट्स पढ़ कर यकीन नही हुआ कि यह वाक्य आपके ही हैं ! अतः दिल किया कि पहले मैं आपके प्रति ग़लत विचार रखने के लिए, आपसे क्षमा मांग लूँ !...बहुत पहले एक बार आपके ब्लॉग पर आया था, आपका लिखा कुछ पढ़ कर, आपके व्यक्तित्व के बारे में धारणा बना कर यहाँ से गया था, उसके बाद आपके ब्लाग पर नही आया ! हम लोग अक्सर यही गलती करते हैं, और अगर गलती का अहसास भी हो जाए तो भी गलती कभी नही मानते ! "
सुभाष जी का तुंरत जवाब आ गया !
"सतीशजी मैं पहले याहू पर लिखता था कुछ मित्रों के सुझाव से कि गुग्गल पर प्राया हिन्दी के रचनाकार हैं यहाँ विचारविनमय होगा इस दृष्टि से गुग्गल पर ही लिखने लगा। यहाँ देखा कि लोग खेमें में बँटे हुए आत्मरत हैं. जिस ग़ज़ल के अशआर आपने फिरदौस के ब्लाग पर पढ़े ये ग़ज़ल याहू पर इस पते पर प्रकाशित है. आपने मेरे बारें में धारणा बदली,अच्छी बात हैं.आप सह्रदय रचनाकार हैं आपके ब्लाग पर जाकर देखा तो ज्ञात हुआ.
पर हमारी सह्रदयता को कायरता मान कोई हिमाकत पर हिमाकत करता जाये तो रोष आता ही है।मैथलीशरणगुप्त ने जयद्रथ-वध खंड काव्य में सच ही कहा है-
निज शत्र का साहस कभी बढ़ने न देना चाहिए
बदला समर में बैरियों से शीघ्र लेना चाहिए।
पापीजनों को दंड देना चाहिए सचमुच सदा,
वरवीर क्षत्रियवंश का कर्तव्य है ये सर्वदा।
आपने टिप्पणी के माध्यम से मुझे याद किया। कृतज्ञ हूँ श्रीमान। "
डॉ सुभाष भदौरिया जैसे बड़े दिल वाले इंसान ही हमारे देश की शान हैं ! ऐसे लोगों के कारण हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों के साथ फलता फूलता रहेगा !