तेरी शर्ट हमसे ज्यादा सफ़ेद क्यों की तर्ज़ पर मीनारों और गुम्बदों को ऊँचा करने और सड़कों पर नमाज़ व आरती करने की आज होड़ लगी है.धार्मिक होने का प्रदर्शन खूब हो रहा है जबकि ऐसी धार्मिकता हमें धर्मान्धता की ओर घसीट ले जा रही है.जो खतरनाक है.देश की गंगा-जमनी संस्कृति को इससे काफी चोट पहुँच रही है.सर्व-धर्म समभाव हमारी पहचान है.सदियों पुरानी इस रिवायत को हम यूँही खो जाने नहीं देंगे. इस मंच के मार्फ़त हमारा मकसद परस्पर एकता के समान बिदुओं पर विचार करना है.अपेक्षित सहयोग मिलेगा, विशवास है. मतभेदों का भी यहाँ स्वागत है.वाद-ववाद से ही तो संवाद बनता है.





करिश्मा कुदरत का..

on रविवार, 5 अक्तूबर 2008



असाध्य रोग को आसानी से ठीक करने वाली चमत्कारिक चिकित्सा पद्धति - होमिओपैथी !

सतीश सक्सेना की कलम से

आज जब मैं कई घटनाओं के बारे में सोचने लगा जिनका सम्बन्ध बीमारियों से है.तो सहसा ख्यालआया कि कट्टरता वादियों से पूछूं भैया इनका धर्म क्या होता है.और जो दर्द है वो किस सम्प्रदाय का है. और जैसे-जैसे बीती-गुज़री बातें सामने आती गयीं जानकार अद्भुत शांति मिली कि कई असाध्य रोगों का उपचार जडी-बूटियों से हुआ और होता है.और प्रकृति तो सभी पर समान रूप से कृपालु रही है.

-१९९९ की बात है, अलका सक्सेना, उम्र ३३ वर्ष, क्रोनिक स्लिप डिस्क (तीन जगह) से पीड़ित, दर्द के कारण चलने फिरने में असमर्थ , पैर और हाथों में सुन्नपन का असर , चिंतित डाक्टरों ने ओपरेशन ही एकमात्र उपाय, बताया और साथ ही यह भी कि पेरालेसिस का खतरा है ! इस स्थिति में एक दिन इसको होमिओपैथी की एक रात ४-५ चीनी की गोलियां दी गयीं और अगली सुबह पहली बार यह लडकी बिना किसी सहारे के बिस्तर से उठाकर आराम से अचंभित होकर अपने पैरों पर खड़ी थी, और यही नही ३ दिन बाद वह शोपरस्टाप में विना किसी सहारे घूमने भी गयी ! आज भी उसकी एम् आर आई रिपोर्ट देख कर कोई डॉ इसपर विश्वास नही करते हैं !

- जम्मू के एक परिवार ने अपने ३ वर्षीया अस्थमेटिक बच्चे को सिर्फ़ ३ बार मीठी गोलियां खाकर, इस बीमारी से सदा के लिए मुक्ति पा ली वे आज भी होमिओपैथी के भक्त है ! -उपरोक्त उदाहरण, किसी भी अच्छे होमिओपैथ के लिए एक साधारण बात है ! मगर होमिओपैथी को सैकडों वर्षों साइंस ने मान्यता प्रदान नही की क्योंकि इसके सिद्धांत साइंस की अवधारणाओं से मेल नही खाते थे और वर्षों इस क्वेकरी ही मानते रहे ! आइये आज होमिओपैथी को समझने का प्रयत्न करें ...

-पौराणिक काल की एक घटना मेरे हिसाब से होमिओपैथी का सटीक उदाहरण है, जब लक्ष्मण को मरणासन्न अवस्था में देख वैद्य सुषेण ने कहा था कि सिर्फ़ संजीवनी पौधे से बनी दवा ही इनको बचा सकती है, क्योंकि लक्ष्मण का तेजतर्रार व्यवहार सिर्फ़ इस पौधे के व्यवहार से ही मेल खाता था !

-पैगम्बर मोहम्मद ने भी जडी-बूटियों की महत्ता ब्यान की . उन्हों ने खजूर, मेथी, कलौंजी आदि का इस्तेमाल कई बीमारियों में किया और इसके अपेक्षित परिणाम भी सामने आये.

-डॉ जगदीशचंद बसु का एक प्रयोग, वनस्पतियों में जीवन पर किया था और इसे प्रमाणित भी किया था, उन्होंने यह भी सिद्ध किया था कि उनमे संवेदना, सुख और दुःख को महसूस करने की वही शक्ति और स्वाभाव है जो कि हम व्यक्तियों में है !

- होमिओपैथी का सिद्धांत है कि अगर आप किसी बीमार व्यक्ति का स्वाभाव जानते हैं तो उसी स्वाभाव के पौधे से बनी औषधि उस व्यक्ति पर संजीवनी सा कार्य करेगी चाहे बीमारी कोई भी क्यों न हो !

-सैकडों वर्ष इन महान होमिओपैथ डाक्टरों ने पौधों से बनाई गयी दवाईयों को अपने शरीर पर प्रयोग (प्रूविंग) कर उन प्रतिक्रियाओं को एक पुस्तक फार्म में लाने में सफलता पायी और इस प्रकार पौधों के मानव गुणों का चित्रण सम्भव हो पाया !

- होमिओपैथी रिपर्टरी में मानव स्वाभाव के लाखों गुणों को दर्ज किया गया है और हर गुण के आगे कुछ दवाइयों के नाम दिए हैं !

- कोई भी अस्वस्थ व्यक्ति, चाहे बीमारी कोई भी क्यों न हो अगर अपना स्वाभाव और शरीर पर होने वाले वातावरण के प्रभाव के बारे में ईमानदारी के साथ सही सूचना प्रदान कर दे तो किसी भी होमिओपैथी डॉ के लिए उसका निदान बेहद आसान होता है !

-मगर उपरोक्त कार्य में एक विशेष व्यक्ति के स्वाभाव की होमेओपैथी दवा ढूँढने के लिए कम से कम २-४ घंटे का समय चाहिए अतः अगर सही पद्धति से अगर कोई प्रक्टिस कर रहा है तो वह डॉ एक दिन में अधिक से अधिक २ -३ रोगी को ही दवा दे पायेगा !

- एक बार अगर रोगी के स्वाभाव के आधार पर निकली हुई दवाएं, पूरे जीवन उसके कार्य आती रहती हैं !

अंत में क्या आप जानते हैं ...

-कि होमिओपैथी में अधिकतर दवाओं को शक्ति कहा जाता है और प्रयोशाला जाँच में इन दवाओं में किसी प्रकार का कोई दवा अंश नही मिलता ! हर दवा की टेस्टिंग रिपोर्ट सिर्फ़ "सुगर पिल्स विद अल्कोहल" ही आयेगा !

-कि होमिओपैथ के लिए आपकी वीमारी का नाम जानना अत्यन्त आवश्यक नही होता ! यहाँ पर दवा से बीमारी का इलाज़ न करके शक्ति( संजीवनी उस व्यक्ति विशेष की ) से रोगी की vital force का इलाज किया जाता है !

7 टिप्पणियाँ:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी व लाभदायक जानकारी प्रदान करवानें के लिए आभार।

राज भाटिय़ा ने कहा…

धन्यवाद इस अच्छी जान कारी के लिये

Anil Pusadkar ने कहा…

अच्छी जानकारी के लिये आभार सतिश जी और शहरोज़ भाई आपका भी आभारी हूं अच्छी पोस्ट पढने का मौका देने के लिये।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी.

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए सतीश जी और सहरोज भाई का आभार!

इरशाद अली ने कहा…

आपका ब्लॉग देखा दिल खुश हो गया। शायद यही ब्लॉगगिंग का मकसद भी है। सभी प्रस्तुतियां रोचक और ज्ञानवर्धक है। अगर इसी तरह चलता रहा तो लगता है कि सभी शानदार जानकारियां लोगो को आसानी से हिन्दी में उपलब्ध हो सकेगी। आगे कुछ और सूक्ष्म सब्जैक्टस को भी हाथ में ले।

इरशाद अली ने कहा…

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