हिन्दू भी रखते हैं रोज़ा


आज मुल्क के दुश्मन तरह-तरह की आतंक कारी गतिविधियों द्बारा हमें बांटने में लगे हैं.वहीँ हम ब्लोगेर-मित्र भी इक-दूसरे को हिंदू-मुस्लिम के चश्मे से देखने की कोशिश कर रहे हैं.अगर दरहकीक़त ऐसा कर रहे हैं तो अप्रत्यक्ष सही हम उन देशद्रोहियों के मकसद को कामयाब कर रहे हैं.वो बम विस्फोट कर हमें एक-दूसरे से बाँटना ही तो चाहते हैं.ऐसे समय हमें अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए.ऐसे वक्त महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ , बिहार के लोग आश्वस्ति का गहरा एहसास करते हैं।
मुसलमानों का बहुत ही पाक महीना है रमजान.इस महीने आत्म-संयम पर विशेष बल दिया गया है।
मराठवाडा के दौलताबाद के इलाके में हिन्दू भी रोजे रखते हैं.ये पूरा अंचल ही हिंदू-मुस्लिम एकता का ज़िंदा सबूत है.दोनों समुदाय के लोग समानांतर पूजा-अर्चना करते हैं और ऐसा आज से नहीं सदियों से करते आ रहे हैं।
दौलताबाद के चाँद बोघ्ले दरगाह में कोई जाकर देख सकता है कि कुरआन का पाठ यानी तिलावत और भजन-कीर्तन अगल-बगल होते रहते हैं.चाँद बोघ्ले भक्ति संत एकनाथ के गुरु थे पर कोई नहीं जानता कि वोह हिंदू थे या मुसलमान.लेकिन इनके प्रति श्रद्धा दोनों समुदाय में समान है.कभी कोई विरोध नहीं.कोई चादर चढाता है तो कोई अपने ढंग से अर्चना करता है.कितनी सुखद अनुभूति है कि आस-पास रहने वाले बहुसंख्यक हिंदू भी रमजान में रोजे रखते हैं।
मराठवाडा के ही खुल्दाबाद स्थित परियों का तालाब में दरगाह परिसर के मध्य शिवलिंग स्थापित है.दरगाह में लगे खम्बों पर हिंदू परम्पराओं के चित्र और नक्काशी अंकित है.जिसे देख कर कई पुरातत्त्व वेत्ताओं का सशंकित होना सहज है कि कहीं ये हिंदू मट्ठ तो नहीं.बावजूद इसके आज तक इसको लेकर न कोई विवाद हुआ और न कोई संघर्ष । दरगाह के वार्षित उत्सव यानी सालाना उर्स में दोनों समुदाय के लोग समान रूप से शिरकत करते हैं.और बिना ब्रह्मण पुरोहित की भागीदारी के कोई उर्स संपन्न नहीं होता।
मराठवाडा का पेठ ग्राम जो नांदेड तालुका में है , में कोई भी एक ही अहाते में मन्दिर-मस्जिद को देख सकता है।
अब छत्तीसगढ़ के सीमांचल जिला मुख्यालय रायगढ़ शहर चलें।
यहाँ एसपी कोठी के बिल्कुल पास ही है मुस्लिम-संत सैयद नज़रुल्लाह की मजार.वर्षों तक इसकी देखभाल एक पंडित जी करते रहे.हालांकि मजार की देख-रेख के लिए स्थानीय जामा मस्जिद ट्रस्ट जिम्मेवार है.और ट्रस्ट भी अपना फ़र्ज़ निभाता ही है.लेकिन पंडित जी अपनी भक्ति में मस्त रहा करते.अज पंडित जी नहीं रहे लेकिन उनके वंशज आज भी उतनी ही श्रद्धा से इस साझी-परम्परा को निभा रहे हैं।
चंपारण बहुत ही चर्चित अंचल है.गाँधी जी ने अपने स्पर्श से इसे अमर कर दिया.पूर्वी चंपारण का जिला मुख्यालय है शहर मोतीहारी.यहाँ भी जामा मस्जिद और एक मन्दिर कि इमारत बिल्कुल पास-पास खड़ी है.ऐसे उदाहरण हमारे देश में कई मिल जायेंगे.आज हमें ऐसी ही रौशनी की तलाश है.जिस पर भी ये किरण पड़ती है वो आत्मविभोर हो उठ ता है।
भारतीय चिंतकों(इसे हिंदू न समझा जाय ) में मुझे विवेकानंद ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है.उनका कहना है: कट्टरवाद की बीमारी सबसे खतरनाक बीमारी है।
और हम उसे ही प्रोत्साहन देने में लगे हैं.जबकि एक कट्टरता दूसरी कट्टरता को जन्म देती है.सवाल हिंदू या मुस्लिम का नहीं बल्कि दोनों ओर से उठी कट्टरता को दबाकर उनमें देश के प्रति फ़र्ज़ को जगाने का है.आज देश में ही बैठे कुछ लोग दूसरों के बहकावे में आकर जो घृणित-कर्म में लगे हैं.हम उन्हें समझाएं और अगर वो न समझ पायें तो हम उन्हें कानून के हवाले कर दें.अगर अदालत उन्हें रिहा कर देती है.तो उन्हें हम देश की मुख्य धारा में लाने का प्रयास करें।
हमारा देश गाँधी और आजाद का है।
बिस्मिल और अशफाक का है।
जब बिस्मिल बीमार होते तो वोह अल्लाह-अल्लाह याद करते ।
और जब अशफाक बीमार पड़ते तो वोह राम-राम का जाप किया करते।
ये देश न किसी लादेन का है और न किसी गोडसे का
फिर विवेकानंद याद आ रहे हैं,उनका कहना था भारत के लिए वेदान्त मस्तिष्क है और इस्लाम देह।
अंत में यही कहूंगा:
ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम
सबको सम्मति दे भगवान्