अल्लाह के लिए न तुम भगवान के लिए
लड़ना है तो लड़ो सदा इन्सान के लिए
हर धर्म है महान हर मज़हब में बड़प्पन
लेकिन नहीं है अर्थ कुछ शैतान के लिए
अपना ये घर संवारो मगर ध्यान तुम रखो
हम वक्त कुछ निकालें इस जहान के लिए
*
सुबह मोहब्बत शाम महब्बत
अपना तो है काम महब्बत
हम तो करते हैं दोनों से
अल्ला हो या राम महब्बत
*
ऐसा कोई जहान मिले हर चहरे पर मुस्कान मिले
काश मिले मंदिर में अल्लाह
मस्जिद में भगवान मिले.
*
और लगे हाथ ये दो शेर भी देख लें...
लहलहाती हुई जो फसल देखता हूँ
इसे मै किसी की फज़ल देखता हूँ
ये न उर्दू की है और न हिन्दवी की
ग़ज़ल को मै केवल ग़ज़ल देखता हूँ...................................गिरीश पंकज
कवि-परिचय
- शुरू से ही साहित्य और कला-संस्कृति के लिए खून-ऐ-जिगर करने वाले गिरीशजी ने आख़िर उस पेशे से मुक्ति पा ही ली जिसे पत्रकारिता कहते हैं.भला, आप जैसा संवेदनशील और विवेकी शायर-कवि, लेखक-संपादक, समीक्षक-व्यंग्यकार वहाँ रह भी कैसे सकता है.अखबार में रह कर भी आपने ज़मीर से समझौते कभी नहीं किए.और अपनी प्रतिबद्धता बरक़रार रखी.छत्तीसगढ़ के मूल निवासी पंकज जी फिलहाल साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, के सदस्य और छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,के प्रांतीय अध्यक्ष हैं। रायपुर में रहते हुए भारतीय एवं विश्व साहित्य की सद्भावना दर्पण जैसी महत्वपूर्ण अनुवाद-पत्रिका और बच्चों के लिए बालहित का सम्पादन-संचालन बरसों से कर रहे हैं।
- अब तक आपके
- ३ उपन्यास- मिठलबरा की आत्मकथा, माफिया, पालीवुड की अप्सरा , 8 व्यंग्य-संग्रह- ट्यूशन शरणम गच्छामि, ईमानदारों की तलाश, भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण, मंत्री को जुकाम, नेताजी बाथरूम में, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाये, मूर्ति की एडवांस बुकिंग एवं हिट होने के फार्मूले, २ ग़ज़ल संग्रह- आंखों का मधुमास, यादों में रहता है कोई सहित 31 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है.-सं.
13 टिप्पणियाँ:
nice
काश कि ऐसा हो पाए ..होता तो होगा ही ....मगर काश कि इंसान ये समझ पाए ..
इंसान के लिये भी क्यों लड-ए भाई ..मोहब्बत क्योन करे?
आह! काश की ऐसा ही होता..कितना अच्छा ये जीवन होता.
इंसा रहता बस इंसा बन कर. बीच में न ये मज़हब होता.
उत्कृष्ट रचना
काश कि ऐसा हो पाए ..होता तो होगा ही ....मगर काश कि इंसान ये समझ पाए ..
प्रिय शहरोज़, गज़ब की रीडरशिप है भाई.. कमाल कर दिया. इतने लोगों की प्रतिक्रिया भी आ गयी? मानना पड़ेगा. मैंने अगस्त से ही कदम रखा है ब्लॉग की दुनिया में. तकनीकी दृष्टि से ज्यादा अनुभव भी नहीं है, लेकिन तुम तो काफी मंज गए हो. ख़ुशी हुयी देख कर. तुम शुरू से ही प्रतिभाशाली रहे हो. तुम्हारी सफलता मेरी सफलता है. इसी तरह आगे बढ़ाते रहो.
"ऐसा कोई जहान मिले
हर चहरे पर मुस्कान मिले
काश मिले मंदिर में अल्लाह
मस्जिद में भगवान मिले. "
काश ऐसा होता !! बहुत ही अच्छी रचना है.
सुन्दर रचना, बधाई। शहरोज भाई आप की याद हमेशा बनी रह्ती है। सम्पर्क में रहेंगे। शुभकामनाओ के साथ.
"ऐसा कोई जहान मिले
हर चहरे पर मुस्कान मिले
काश मिले मंदिर में अल्लाह
मस्जिद में भगवान मिले. "
लाजवाब रचना!
दुआ करते हैं कि ऎसा हो पाए!!!!!!!!
काश मिले मंदिर में अल्लाह
मस्जिद में भगवन मिले ..
सुन्दर है!!
कौन यहाँ मंदिर है जिसमें
रहता है बंसी वाला,
काबा में मत बतलाओ तुम
रहता है अल्ला ताला,
मुझसे रोज़ मिला करते हैं
दोनों आकर ख्वाबों में,
तुम को भी मिलवा दूँगा तुम
आओ मेरी मधुशालाI
-पीयूष यादव
www.NaiNaveliMadhushala.com
बहुत बढ़िया सोच है , काश ये हम सब सीख सकें ! रचियता गिरीश जी को शुभकामनायें !!
गिरीश पंकज जी,
ये आपकी शेरो-शायरी,
भगवान को पसंद है, अल्लाह को है प्यारी।
दिली सुकून देती हैं।
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